दुनिया की सबसे बड़ी ऑटो कम्पनियों में से एक Toyota मोटर कॉर्प को भारत में एक छोटी सी ऑटो कम्पोनेंट कम्पनी के हाथों ट्रेडमार्क केस में करारी हार झेलनी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने Prius Trademark को लेकर चल रहे विवाद में Toyota के तर्क को खारिज करते हुये कहा कि ट्रेडमार्क राइट्स टेरिटॉरियल यानी इलाकाई होते हैं ना कि ग्लोबल।
Toyota ने कम्पोनेंट बनाने वाली कम्पनी मै. प्रायस ऑटो इंडस्ट्रीज एंड अदर्स के खिलाफ ट्रेडमार्क के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। Toyota ने अपनी शिकायत में कहा था कि कम्पोनेंट कम्पनी टोयोटा और प्रायस जैसे ट्रेडमार्क का दुरुपयोग कर रही है।
एक ओर जहां Toyota ट्रेडमार्क जापानी कम्पनी के नाम से भारत में रजिस्टर्ड था लेकिन इसकी हाइब्रिड कार प्रायस का भारत में ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड नहीं था। कम्पनी ने प्रायस को जापान मेें 1997 में लॉन्च किया था और इसके 13 साल बाद यानी 2010 में इसे भारत के बाजार में उतारा।
जबकि प्रायस ऑटो इंडस्ट्रीज़ ने वर्ष 2002 में ही अपने ऑटो पार्ट्स और एक्सैसरी के लिये Prius Trademark रजिस्टर कर लिया था।
ऐेसे में Toyota ने Prius Trademark को कैंसल करने और ट्रेडमार्क के दुरुपयोग का हर्जाना दिलाने के लिये शिकायत की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिसम्बर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट की डिविजन बेंच के फैसले और कई केस जजमेंट पर गौर किया।
इस फैसले में हाईकोर्ट ने अपने पहले के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें Prius Trademark को लेकर Toyota के पक्ष को सही ठहराते हुये उसे स्टे दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी गौर किया कि बचाव पक्ष यानी प्रायस ऑटो इंडस्ट्रीज़ ने Toyota के तीन ट्रेडमार्क के इस्तेमाल पर रोक लगाने के फैसले को स्वीकार कर लिया है ऐसे में अपील सिर्फ Prius Trademark तक ही सीमित है।
जुलाई 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि टोयोटा ने Prius Trademark का सबसे पहले इस्तेमाल किया था और 1997 से ही ग्लोबल मार्केट में इस नाम से कार बेच रही है ऐसे में Prius Trademark की गुडविल और रेपुटेशन भारत में भी थी भले ही इस ब्रांड को कम्पनी ने ना तो रजिस्टर किया और ना ही प्रायस कार को लॉन्च किया।
लेकिन इस फैसले को पलटते हुये दिल्ली हाईकोर्ट की डिविजन बैंच ने कहा कि ट्रान्सनेशनल रेपुटेशन का तर्क सही नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी एक इलाके में ट्रेडमार्क का इस्तेमाल करने भर से ब्रांड के मालिक को उस ब्रांड का किसी अन्य देश में मिल्कियत और इस्तेमाल करने का अधिकार अपने आप नहीं मिल जाता।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शिकायत करने वाले पक्ष (टोयोटा मोटर कोर्प) की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह साबित करे कि 1 अप्रेल 2001 से पहले उसके ब्रांड ट्रेडमार्क (प्रायस) की भारत में पहचान और साख थी।
कोर्ट ने एकेडेमिक पब्लिकेशन और यूके सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य विदेशी अदालतों के फैसलों पर भी गौर किया ताकि यह तय किया जा सके कि ट्रेडमार्क टेरिटोरियलिटी (इलाकाई) के सिद्धांत से चलते हैं या यूनिवर्सेलिटी (सार्वभौमिकता) के सिद्धांत से।
सुप्रीम कोई ने दिसम्बर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट की डिविजन बैंच के फैसले पर मुहर लगाते हुये टोयोटा के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि चूंकि भारत में गुडविल/रेपुटेशन की बात साबित नहीं हो पाई है ऐसे में किसी अन्य तर्क पर गौर करने की आवश्यकता नहीं है।